अद्भुत है ये बचपन, अद्भुत बचपन की पढाई है,
जब से हाथ में कलम उठाई, दुनिया समझ में आयी है।
मैं छोटा नन्हा सा बालक, कितना बोझ उठाता हु,
दादा दादी का हाथ पकड़, उन्हें बचपन की सैर करता हु।
नाना के संग मस्ती करता, नानी संग छिप जाता हु,
मासी संग करता उछल कूद, चच्चा संग प्यार जताता हु।
अद्भुत है माँ की ममता, अद्भुत उसकी कलाई है,
उन्ही हाथो ने संभाला कभी, कभी पेंसिल पकड़ना सिखलाई है।
स्कूल की टीचर जी जैसे, दूसरी माँ बन जाती है,
अद्भुत है उनका व्यक्तित्व, जो प्यार से पढाई कराती है।
मैं खेलता हु, कूदता हु, कभी सबका गुरु बन जाता हु,
कहता है यह अद्भुत बचपन मैं लौट कभी नहीं आता हु।