क्यूँ खुद की ऐंठ में ठना हुआ है
माहौल गज़ब बना हुआ है, मोह माया के जाल में, हर रिश्ता भी सना हुआ है,
हुनर किसी में कम नहीं है, पर व्यक्ति ख़ुद की ऐंठ में ठना हुआ है|
भावनाओ का व्यापार लगा है , ज़ज़्बातों का मोल बड़ा है ,
कितना cooperate करे अपनों में , हर condition पर सवाल खड़ा है
सवाल परिस्तिथि का नहीं है, अपनी पुरानी स्थिति का नहीं है,
क्युकी आज तुम राजा बने हो, सवाल किसी गुण रुपी व्यक्ति का नहीं है,
भाव भंगिमाओं को नज़र अंदाज़ कर, साथी भी रोबोट बना हुआ है,
बुद्धि पर संयम नहीं है जिसके, पर व्यक्ति खुद की ऐंठ में ठना हुआ है|
खनक सुनाई देती रुपया की, पर ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं है,
चेहरे की चमक से जल रहे हो, पर आत्मा की उदासीनता का आभास नहीं है,
ढोल बजाना अपनी मजबूरी का, ये फितरत कुछ ख़ास नहीं है,
सिकंदर कैसे तुम बन जाओगे, जब उदासीनता किसी के आस नहीं है, पास नहीं है,
उतार कर रख एक तरफ चेहरे से, जो लोभ का मुखौटा बना हुआ है,
हालत से लड़कर सीख जीतना, क्यों खुद की ऐंठ में ठना हुआ है,
हंसकर तारीफ़ कर सभी की, क्यूँ खुद की ऐंठ में ठना हुआ है…….क्यूँ खुद की ऐंठ में ठना हुआ है|
डॉ. सोनल शर्मा
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